थैंक गॉड


कुछ एहसास और लम्हें कभी-कभी हमको यह कहने पर मजबूर कर देते है की "थैंक गॉड". ऐसा ही एक पल मेरी पत्रकार साथी सुमन वर्मा की जिंदगी में आया, और उनके मुंह से निकल ही गया थैंक गॉड. उनके शब्दों में लिखा यह लेख आप भी पढ़े. 
मेरी एक सुबह मैं हिसार से सिरसा के लिए रवाना होने हेतु बस स्टैण्ड पहुंची। उन दिनों जाट आरक्षण आंदोलन जोरों पर था जिसके कारण वाहन कम चल रहे थे। स्वाभाविक था कि बस में सवारियां भी ज्यादा थीं।  लेकिन मेरे एक परिचित मुझे बस में दिखाई दिए और उन्होंने मुझे सबसे आगे वाली सीट पर जगह दिलवा दी। बस एक रफ्तार से चली जा रही थी और हम फतेहाबाद पहुंचने ही वाले थे कि अचानक, दुल्हन की तरह सजी एक गाड़ी पर मेरी नज़र गई जो एक पेड़ से टकराई हुई थी। बस की रफ्तार धीमी हुई और चालक ने बस रोक ली। सभी यात्री ताजा हादसे में दुर्घटनाग्रस्त हुई गाड़ी को देखकर चकित थे। उस समय मैंने महसूस किया कि मानों सभी मन ही मन कह रहे हों, हे भगवान यह क्या हुआ?, फिर सभी आपस में चर्चा करने लगे कि यह तो बहुत बुरा हुआ, जिसकी शादी थी उसने तो कभी सोचा भी नहीं होगा कि यह दिन उसके लिए .....।
उसी समय पीछे बैठे कुछ यात्रियों ने एक साथ कहा थैंक गॉड। यह सुन मैं कुछ समझ नहीं पाई। लेकिन जैसे ही दुल्हा फोन पर बात करते हुए मेरी खिडक़ी के आगे से गुजरा तो मेरे मुंह से भी एकदम निकला थैंक गॉड और गाड़ी के पास खड़े एक सज्जन ने बताया कि हादसे में किसी को भी चोट नहीं लगी है। इतना सुनते ही बस चालक ने भी अपने गंतव्य की ओर ध्यान दिया। 

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