अन्ना हजारे जी अनशन पर क्या बैठे, पूरे देश का जनमानस उनके पीछे हो लिया. जैसे देश की आधी आबादी इसी ताक में बैठी थी की कब अन्ना जी भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन पर बैठे और कब उनको भी इस मुहीम में अपनी आवाज बुलंद करने का मौका मिले. आम आदमी तो आदमी, नेता-राजनेता के साथ-साथ साधू-संत भी उनको समर्थन में जुड़ने लगे. आज स्थिति यह है की अनशन पर हजारे के साथ फोटो खिंचवाने के लिए हजारो बैठे है लेकिन फोटो तो हजारे जी की ही लग रही है. यह हाल सिर्फ दिल्ली का ही नहीं है अपितु पूरे देश में ही फोटो खिंचवाने के लिए ऐसा हो रहा है. लेकिन सोचने का विषय यह है की भ्रष्टाचार में विश्व में पांचवे स्थान पर आने वाले भारत से भ्रष्टाचार ख़त्म हो पायेगा. इसमें कोई दोराय नहीं की अन्ना जी अपनी
मुहीम में जरुर कामयाब होंगे लोकपाल विधेयक लाने में, लेकिन मेरा पहलू यह है की क्या ऐसे में भ्रष्टाचार जड़ से ख़त्म हो पायेगा. तो मेरा मानना तो यही है की अगर फोटो खिंचवाने से भ्रष्टाचार ख़त्म होता तो आज कभी का हो लिया होता. रही बात अन्ना जी के अनशन की तो आज गांधीवाद की नहीं अपितु देश को गांधी की जरुरत है.
अब देखो न लगभग 6 वर्ष पूर्व जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई थी तो कहा गया था की भाजपा को तो महंगाई मार गई. क्योंकि अगर आप नहीं भूले हो तो उस समय पहली बार प्याज की कालाबाजारी के चलते प्याज की कीमतें आसमान छू गई थी. जबकि आज सिर्फ प्याज, टमाटर व् दालें ही नहीं अपितु आम जरुरत की प्रत्येक वस्तु के भाव आम आदमी की पहुँच से बाहर हो चुके है. मिडिया सहित आम आदमी से लेकर विपक्ष ने खूब हो-हल्ला किया लेकिन सरकार के कानो पर जूं तक नहीं रेंगी. लोकसभा के चुनावो के दौरान जनता को बरगलाने के लिए सरकार ने महंगाई दर शून्य के करीब तक दिखने का प्रयास किया. एक बारगी तो ऐसे लगा जैसे सामान फ्री के भाव में बिक रहा है. भला हो कांग्रेस का की चुनावों के दौरान वो फिर से सत्ता पर काबिज हो गई. लगा की इस बार सरकार चौकन्ना होकर जनहित में काम करेंगी. लेकिन इस बार सरकार व् सरकार के नुमाइंदो ने चौकन्ना होकर काम तो किया लेकिन जनहित में नहीं स्वयं हित में. यही कारण था की हमारे सामने एक के बाद एक भ्रष्टाचार के कारनामे खुलते चले गए. और हम सिर्फ देखते-सुनते रहे.
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