शुक्रवार 8 जुलाई को मेरी शादी की चौथी वर्षगाँठ थी. सोच-सोच कर बुरा हाल था की मैडम को क्या गिफ्ट दूँ. कुछ ऐसा करूँ की मैडम खुश भी हो जाएँ और खर्चा भी कम हो. बहुत सोचने के बाद एक विचार मन में आया की क्यों न एक सुन्दर सी पोस्ट लिख कर ही मैडम को तोहफा दिया जाएँ. शादियों में जाने के क्रम को तोड़ते हुए बैठ गया कुछ लिखने को. लेकिन यह क्या ब्लॉग पर हिंदी लिखने का सिम्बल ही गायब था. मन मसोस कर रह गया, आखिर रात को कर भी क्या सकता था, और ना किसी से पूछ सकता था. कुछ ना लिखने से मिसेज भी नाराज और गिफ्ट भी कुछ नहीं. शनिवार को जरुर कुछ लिखूंगा कह कर मनाया, तो जान में जान आई. शनिवार दोपहर से फिर शादी का जोर रहा.
शाम को जैसे ही कंप्यूटर के आगे बैठा सबसे पहले पाबला जी की पोस्ट पर नजर गई की गूगल ने ब्लॉग पर हिंदी लिखने की सेवा कुछ समय के लिए बंद कर दी है. मारे गए, मुंह से अचानक निकला और एक पोस्ट पर और नजर गई की बुकमार्क के जरिये ब्लॉग पर हिंदी में लिखा जा सकता है. किसी तरह मैंने यह सेवा ली और लिख कर देखा तो मुंह से एकाएक निकला की भागवान आज जरुर कुछ लिखूंगा. उसने ताना देते हुए कहा की जाओ-जाओ अब क्या लिखोगे. कल लिखते तो बात थी. देख लिया आपका प्यार, शादी की वर्षगाँठ थी, ना कोई उपहार न कोई लेख. मैंने भी उसको चिड़ाने के लिए अपना मेल बॉक्स खोला और यह कविता उसको उपहार स्वरूप छाप दी.
शादी की दास्तान
अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नहीं संभल रही थी,
सुबह-सुबह मैडम का चाय लेकर आना,
थोडा शरमाते हुए हमें नीद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिराना,
मुस्कुराते हुए कहना की डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को ऑफिस भी है जाना.
घरवाली भगवान का रूप लेकर आई थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था.
*4 साल बाद........*
सुबह-सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
टेबल पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ तो मुन्नी को स्कूल छोड़ते हुए जाना..............
एक बार फिर वो ही आवाज आई,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नहीं चारपाई,
अगर मुन्नी लेट हो गई तो देख लेना,
मुन्नी की टीचर को फिर खुद ही संभाल लेना.
न जाने घरवाली कैसा रूप ले कर आई थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
साँस भी लेते है तो उन्ही का ख्याल होता है,
हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है,
क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुवारें बन पाएंगे.
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शाम को जैसे ही कंप्यूटर के आगे बैठा सबसे पहले पाबला जी की पोस्ट पर नजर गई की गूगल ने ब्लॉग पर हिंदी लिखने की सेवा कुछ समय के लिए बंद कर दी है. मारे गए, मुंह से अचानक निकला और एक पोस्ट पर और नजर गई की बुकमार्क के जरिये ब्लॉग पर हिंदी में लिखा जा सकता है. किसी तरह मैंने यह सेवा ली और लिख कर देखा तो मुंह से एकाएक निकला की भागवान आज जरुर कुछ लिखूंगा. उसने ताना देते हुए कहा की जाओ-जाओ अब क्या लिखोगे. कल लिखते तो बात थी. देख लिया आपका प्यार, शादी की वर्षगाँठ थी, ना कोई उपहार न कोई लेख. मैंने भी उसको चिड़ाने के लिए अपना मेल बॉक्स खोला और यह कविता उसको उपहार स्वरूप छाप दी.
शादी की दास्तान
अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रहीं थी,
की संभाले नहीं संभल रही थी,
सुबह-सुबह मैडम का चाय लेकर आना,
थोडा शरमाते हुए हमें नीद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिराना,
मुस्कुराते हुए कहना की डार्लिंग चाय तो पी लो,
जल्दी से रेडी हो जाओ,
आप को ऑफिस भी है जाना.
घरवाली भगवान का रूप लेकर आई थी,
दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था.
*4 साल बाद........*
सुबह-सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
टेबल पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ तो मुन्नी को स्कूल छोड़ते हुए जाना..............
एक बार फिर वो ही आवाज आई,
क्या बात है अभी तक छोड़ी नहीं चारपाई,
अगर मुन्नी लेट हो गई तो देख लेना,
मुन्नी की टीचर को फिर खुद ही संभाल लेना.
न जाने घरवाली कैसा रूप ले कर आई थी,
दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
साँस भी लेते है तो उन्ही का ख्याल होता है,
हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है,
क्या कभी वो दिन लौट के आएंगे,
हम एक बार फिर कुवारें बन पाएंगे.
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