सब अच्छा ही हो रहा है


बहुत दिन हो गए, ना कंप्यूटर पर बैठ पाया और ना ही कुछ गुफ्तगू की. अभी और कितने दिन गुफ्तगू नहीं कर पाउँगा यह भी नहीं बता सकता. इसका कारण मैंने अपने एक पिछले लेख में किया था की बहन की सगाई कर दी है. अभी शादी को दिन तो जरुर बचे है लेकिन घर में सबसे बड़ा होने के कारण सभी काम मुझे ही करने पड़ रहे है. इसका मलाल तो मुझे है की एक तो इतनी तपतपाती गर्मी में काम करना पड़ रहा है और उस पर मैं गुफ्तगू भी नहीं कर पा रहा हूँ. बाते तो करने के लिए बहुत सी है मेरे पास. लेकिन कभी बाजार के काम और कभी घर में पेंटर का लगना. ये कारीगर भी ना सामान के लिए बहुत चक्कर लगवाते है. कभी यह लाओ कभी वो लाओ. उस पर उनका ध्यान रखना की आज क्या किया, और कल क्या काम करेंगे. कहीं ऐसा ना हो की कल सुबह आये और आते ही कहे बाबु जी काम क्या करे सामान तो है ही नहीं. इसलिए सारा काम जिम्मेदारी से करना पढता है. अब घर वालो का भी क्या कसूर है. पापा और छोटा भाई व्यापार सँभालते है और पत्रकारिता क्षेत्र में और बड़ा होने के कारण सभी काम मैं कर रहा हूँ.
लेकिन मारे ख़ुशी के सभी काम बहुत अच्छे से हो रहे है. इसमें आपकी दुआ भी है और घर वालो का विश्वास भी की मैं सभी काम कर सकता हूँ. अब देखो ना लड़का देखने से फाइनल करने तक सारी जिम्मेवारी मेरी थी. लड़के वाले हिसार के थे लेकिन उनका सारा परिवार हिसार से 90 किलोमीटर दूर सिरसा में रहता है. वैसे शादी भी 18 जुलाई को सिरसा में ही है. किसी तरह जानकारी जुटा कर हौसला बांधा और बात को सिरे चढाने के लिए आगे की बात शुरू की. सब कुछ ठीक-ठाक होता गया और हम घर देखने के लिए उनके घर पहुँच गए. घर और घर के ठाठ-बाट देखे तो एक बारगी लगा की यहाँ मेरी बहन सुखी रहेगी. इसलिए ऐसा सोच कर रस्मो-रिवाज के हिसाब से सारी बात कर ली गई. बात सिरे भी चढ़ गई और लड़की देखने की बात कहते हुए उन्होंने हमको विदा किया. ख़ुशी-ख़ुशी घर आये और तैयारियों में जुट गए की जितनी जल्दी हो सके बहन को दिखा दिया जाये. जिससे की जल्दी से जल्दी शादी से निपट सके. ऐसा ही कुछ हुआ और चार दिन बाद ही बहन को दिखाया गया. होने वाले जीजा सहित पूरे परिवार को बहन पसंद आ गई और बात पक्की हो गई.
ऐसा लगा जैसे माँ-बाप के दिल पर लड़की की शादी का जो बोझ होता है वो अब जल्दी ही उतर जायेगा यही सोच कर पूरे घर में ख़ुशी का माहौल था. सगाई के लिए जैसे ही संबंधियों और रिश्तेदारों को बताने का सिलसिला शुरू हुआ तो इस रिश्ते को बनवाने के लिए मेरी प्रसंशा भी होनी जरुरी थी. सुन कर अच्छा लगा की सभी मेरी दिल खोल कर बढाई कर रहे थे. अब सभी काम मैंने किये थे और बड़ा होने के कारण नई-नई जुडी इस रिश्तेदारी से भी मुझे ही आगे की बात करनी थी. सो समय-समय पर बाते होती रही. ज्यादा दुःख था तो इस बात का की बहन के होने वाले ससुर का एक साल पहले सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था. इसलिए यह फैसला लिया गया की मांग का कार्यक्रम हिसार में किया जायेगा और शादी सिरसा में. मांग को लेकर उन्होंने हमसे एक ही आशा रखी थी की हमारे मेहमानों की दिल खोल कर आवभगत की जाए. सुबह 6 बजे का लगा हुआ मैं शाम को 6 बजे जब लड़के वालो के बहुत बढ़िया-कमाल की आवभगत के फोन बजने शुरू हुए तो दिल के किसी कोने से आवाज आई की मेहनत रंग लाई है. क्योंकि अब जो करना है उन्हें करना है.
शादी को अभी 20 दिन पड़े है. उस से पहले घर को संवारना था. कुछ खरीददारी करनी थी. शादी के कार्ड भी छप कर आ चुके है. बस अब उन्हें बाटने में लग जाऊँगा. सो जुलाई में शायद गुफ्तगू करने का समय कम ही मिले. या हो सकता है मिले भी ना. इसलिए आज ख़ुशी हो रही है की मैं अपने साथियो और पाठको के बीच गुफ्तगू कर रहा हूँ. अब बहन भी एकलौती है. बड़ा भाई होने के नाते सारी जिम्मेदारी तो निभानी है ना. वैसे मेरे जीजा भी एकलौते है. बहुत ही सुन्दर और स्मार्ट है. व्यापारी है. आर्चिज गैलरी का बहुत बड़ा शोरुम है. एक बहन है उनकी, जो शादीशुदा है और पुणे में रहती है. कहने को शादी के बाद घर में चार की सदस्य होंगे लेकिन परिवार बहुत बड़ा है. आज परिवार उसी का बड़ा होता है जो प्यार-प्रेम से रहता है. वरना आज के समय में भाई-भाई की नहीं बनती. मैं क्या कहना चाह रहा हूँ शायद आप समझ गए होंगे की जैसा परिवार एक लड़की वाले चाहते है वैसी ही रिश्तेदारी हमको मिली है. हो सका तो शादी के बारे में भी गुफ्तगू करूँगा. तब तक के लिए मुझे हौसला और इजाजत दे की मैं शादी को अच्छी तरह से निपटा सकूँ.

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4 आपकी गुफ्तगू:

Udan Tashtari said...

इत्मिनान से फुरसत होकर आयें..शुभकामनाएँ.

संगीता पुरी said...

शुभकामनाएं !!

kshama said...

Anek shubhkamnayen!

mamta vyas said...

shubh kaamnaayen

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