धुँआ धुँआ होता कानून


क्या कानून टूटने के लिए ही बना है । लगता तो ऐसा ही है क्योकि यहाँ हर रोज ऐसे ही कानून बनते है ऐसे ही टूटते है । हद तो उस समय हो जाती है जब स्वयं कानून बनाने वाले ही इसको तोड़ते है । अब देखो न कभी सर्वोच्च न्यालय किसी जनहित याचिका के चलते कोई नया कानून बना देता है तो कभी सरकार जनहित में । लेकिन कोई यह नही सोचता की आखिर कानून मानना तो जनता को ही है न । मेरे देश में इतने कानून है की न्यायाधीश को सजा सुनाने के लिए पुस्तक का सहारा लेना पड़ता है । कानून पर कानून बनने के कारण इनका टूटना भी लाजमी है । शायद यही कारण है ऐसे ही कुछ कानूनों का या तो जनता पालन नही करती या फिर आज ऐसे बहुत से कानून लागु होने का इन्तजार कर रहे है । मेरे देश में 2 अक्तूबर 2008 को ऐसा ही एक कानून बना जो आज लागू तो हो चुका है लेकिन कोई कार्यवाही को लेकर यह कानून कागजो तक ही सीमित है । फिर भले ही इस कानून के लागु होने से सरकार को भारी जुर्माना ही क्यो न मिलना हो ।
मैं बात कर रहा हु धूम्रपान निरोधक कानून की । जहा आज हर जगह इस कानून को हम धुँआ धुँआ होते देख सकते है वही आज तक हिसार में किसी एक का भी जुर्माना नही किया गया । उस पर हिसार के उपायुक्त महोदय का यह कहना की प्रशासन की ओर से कोई कड़े कदम नही उठाए गए है लेकिन जल्द ही इस कानून के प्रति जानता को जागरूक किया जाएगा यह दर्शाता है की प्रशासन भी इस कानून के प्रति गंभीर नही है । फिर न्यालय व् सरकार का क्या दोष क्योकि देश में वैसे ही राजनीति हावी है । यही कारण है की भारत में आज तक यह कानून बनने के बाद लागु नही हो पाया है ।

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