असमंजस में कलम


मुझे एक मेल मिली. मेल पर लिखा था की असमंजस में कलम. में ज्यादा कुछ समझ तो नहीं पाया लेकिन यह टाइटल मुझे परेशान कर गया. सो मैंने बिना कोई देरी किये मेल खोली तो पता चला की मेरी गुफ्तगू के किसी पाठक ने यह कविता लिखी है जिसे मुझे अपने ब्लॉग पर लगाना था. में यह कविता ज्यों की त्यों आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. इस कविता का में कोई श्री नहीं लेना चाहता इसलिए कविता भेजने वाले का नाम रोहतास है और उनका मोबाईल न. है 9729120036.
कलम पर यह कविता कुछ इस तरह लिखी गई है की:-
भगवान् क्या लिखू
व्यथा लिखू या करुणा लिखू
कलियुग में नारी के शीलहरण लिखू
मन से लिखू वचन से लिखू या कर्म लिखू
भगवान् क्या लिखू
आर्यावर्त की धूमिल संस्कृति लिखू
बदलते रिश्ते, बनते-बिगड़ते रिश्तो के समीकरण लिखू
खोते नैतिकता मानव, जाते गर्त को लिखू
भगवान् क्या लिखू
फैलती संस्थाए, गिरता सामाजिक स्तर लिखू
बढ़ता ढोंग, फैलता व्यवसायीकरण लिखू
घर-घर में बढ़ता उन्माद, गृहयुद्ध लिखू
भगवान् क्या लिखू
दिल,दिमाग का चलता द्वन्द युद्ध लिखू
प्रेरणा लिखू या जबरदस्ती लिखू
या तोड़ बंधन भक्ति लिखू
भगवान् क्या लिखू
साक्षर लिखू या निरक्षर लिखू
क्रोध लिखू या फिर अमृत लिखू
कोमल हृदय विदारक लिखू
भगवान् क्या लिखू
इर्ष्या लिखू या द्वेष लिखू
अंतर मन पर लिखू या ब्रह्मं मन पर लिखू
भगवान् क्या लिखू.....

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